बसे पहिने नेपालमे किर्सी पेसामे संलगन भेलहा जाइतके रुपमे परिचित “थौर” सब्दबाटे थारू थर भ्याल्छइ । थौरके मतलब मैदान भाग बुझाहाबे छइ, मैदान भागमे रहेकेबला कारनसे थारू कहिते आबे छइ ।
नेपालके इतिहासमे थारू जाइतसबके छुटे पहिचान छइ। जहिनङ भेसभुसा, साँस्किर्तिक, कला, धर्म, रितिरिवाजसब छइ। खाँ थारू, चौधरी, राउत, माझी, बसार, धमी, गच्छदार, सरदार, मण्डल, राना, भगत, थन्दार, फनैत, तब्दार, मोदी, खवास, हलदलिया, विस्वास, थनैत सिंह थर भेलहा सब थारूमे परै छइ। थारू समुदायमे सिक्षित लोकसब कमे छइ या खेतीपातीमे बेसी ध्यान देलाके कारण यी जाइतके पहिचान या विकास नइभेलहाके कारण चिए।
थारू समुदाय तराइके सबसे बरका एकल जाइत समुदायके रूपमे देखल जाइछेइ या नेपालमे चाइर नमरमे आबेछइ । हमर पूर्वजसबके कहबी अनुसार थारूसब सबसे पहिने भारतसे कपिल्वस्तु हेइत नेपालमे मेची से महाकाली तक रहिते आबे छइ । रामानन्द पर्साद सिँह अपन लेखमे लेखने छइ । थारूसब विसेस् कइर्के किर्सी पेसामे आधारित भेलाके कारण दोसर पेसामे अपन पहिचान या परिचय बनाबेले नइ सक्नेछइ । यहाँ कर्म्मे कतै थारूसब अपन ठाम्से सइरके दोसर ठाम्मे जायाके अपन थर परिवर्तन कइरके रहल छइ।